सोमवार, 8 सितंबर 2014

प्रकृति के काल चक्र को बिगाड़ने का दोषी मनुष्य ही है

आज मनुष्य ने पापों की परिणीति को चरम सीमा पर पहुंचा दियाँहै मानो लगता है की संसार का अंत आ चुका है ,जब  ईश्वर ,खुदा ,ईसा संसार के सभी मनुष्य से पूर्णत: नाराज हो जाएगा तो प्रलय आ जायेगी परन्तु अभी कम और कभी कभी थोड़ा सा नाराज होता है तो छोटी छोटी विपदाएँ आ जाती हैं जैसे सुनामी ,बहुत सी बरसात भाड़ ,भूकम्प आदि |
आज मनुष्य अपनें स्वार्थ के लिए प्रकृति स्वरूप असंख्य वृक्षों को काट रहा है ,अनगिनत पशुओं का वध कर या करवा रहा हैं ,ना जाने कितनी भूमि का दोहन कर रहा है ,आकाश में प्रक्षेपास्त्र छोड़ रहा है ,पशु तो छोड़िये पक्षियों तक को नहीं बख्शा जा रहा है ,जमीन को केमिकल्स के जरिये जहरीली बनाई जा रही है ,प्रत्येक देश हथियारों ,गोला बारूद का जखीरा एकत्रित कर रहा है ,जमीन से सभी खनिज निकालकर उसे पोली कर रहा है ,समुन्द्र को भांति भांति प्रकार से प्रदूषित किया जा रहा है ,हवा तक मीलों और फैक्ट्रीज से निकले धुंए से पूर्णत: प्रदूषित हो गई है ,यानी की ये संसार देखा जाए तो मनुष्यों के रहने के प्रयुक्त भी नहीं रहा है ,अब सोचिये ये सब कौन कर रहा है ,और जो ये कर रहा है ,वो ही दोषी है तो दंड का भागी भी तो वाही होगा ,इसलिए आज नहीं तो कल हम सभी को परिणाम भुगतना तो पडेगा ही |