गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

प्यार के बदले दुत्कार,क्या कहें व्यवहार या संस्कार (पार्ट २)

इसी प्रकार समय बीतता रहा और मैं फरवरी १९८७ में ग्रह प्रवेश कर गया क्योंकि मकान का निर्माण पूरा हो चुका था और हम किराए के मकान बी -३२८ में रहते थे ,परन्तु बीच वाला और छोटे वाला ,और माताजी कोई भी मकान में नही आ रहा था ,मैं इन सबको जबरदस्ती इस मकान में उठाकर लाया की अगर मैं अकेला ही मकान में रहूंगा तो समाज क्या कहेगा की इतनी बड़ी कोठी में अकेला रह रहा है और भाई और माँ किराए के मकान में रह रहे हैं ,और दुसरा ख़तरा ये भी था की अगर मैं इन सबको अपने मकान में नहीं लाता तो बीच वाला बी--३२८ को ही खाली ना करता और वोहरा साहबबड़े को गालियाँ देते क्योंकि मकान तो उसी ने किराए पर ही लिया था इसी तरह मौज मस्ती में समय बीतता जा रहा था पूरा परिवार एक ही रसोई में पका खाना खा रहा था अचानक बड़े को व्यापार में १५--२०-लाख का नुक्सान हो गया तो उसने दोनों से अपना दिया पैसा ही माँगा तो वो लोग बिफर गये और पैसा देने से भी इनकार कर दिया और बजाय साथ देने के अपने -अपने बर्तन भांडे उठाकर रातों रात अपने अपने कमरे में सिमित हो गए और बोलचाल भी बंद कर दी ,बड़े को इन दोनों ने नाही तो पैसा दिया और नाही हिसाब तक किया तो बड़े ने सदर की दूकान बेचीं और जो पैसा पास था व्यापारियों को साड़ी देनदारी दे दी और अपनी गुड विल पर आंच ना आने दी और सबका हिसाब साफ़ कर नए तरीके से व्यापार शुरू कर दिया ,पर पूरी फॅमिली से दिल खट्टा हो गया और किसी प्रकार सन १९९३ आ गया तोइनसे हिस्साब मांगा तो दोनों ने हाथ खड़े कर दिए ,
अब हमारे रिश्तों में इतनी दरार पड़ चुकी थी की ,एक साथ रहना दुश्वार था ,अत; मैंने इन सबसे अलग होना चाहा वैसे भी ये लोग अब अनैतिक कार्यौं में संलग्न होने लगे थे जैसे की किसी की जगह किसी का मकान घेर लेना ,उसी समय में इन्होने जे-६४ ग्रेटर कैलाश ,जे .पि .शर्मा जी के साथ मिलकर एक ओरत का मकान घेर लिया तो इन से और दिल खट्टा हो गया की ये तो बनी बनाई इज्जत खाक में मिलाने जा रहे हैं इनको समझाया भी परन्तु इन पर कोई असर नही हुआ ,अत; एक हम चार व्यक्ति बैठे और आपस में हिसाब किताब कर लिया ,जो भी प्रेम ने प्रेम से माँगा वो सभी उसको अशोक चुघ और जे .पी .शर्मा जी के समक्ष दे दिया गया और मेरे पास बच्चाकेवल एक मकान बी ३२२ और लगभग १० लाख का कर्जा ,और प्रेम को लगभग ४० लाख का समान जिसमे एक दारु का लाइसेंस ,एक फैक्ट्री .और लगभग १० लाख नकद ,और भी लाखों का सामान था जो की मैं लिखना मुनासिब नहीं समझता ,इसके बदले में हमने कुछ कागज़ प्रेम से करवा लिए ,और एक कागज़ इसने हाथ से भी लिख कर दिया जो की भावनाओं में बहकर मैंने फाड़ दिया जिसका खामियाजा आज भी मैं भर रहा हूँ ,काश मैंने वो पर्चा ना फाडा होता तो आज मुझे कोर्ट कछेरी के चक्कर ना लगाने पड़ते ,पर होनी को कोण ताल सकता है ,छोटा वाला तो पहले ही ४ लाख ले जा चुका था ,उसने तो बाद में और डिमांड नहीं की ,
उसके बाद तो हम तीनो के सम्बन्ध बिल्कुल ही ख़राब हो गए ,प्रेम की तरफ़ से धमकियां भी आने लगी ,और ये मकान खाली करके जाने का नाम ही नहीं लेता था मैं जब भी इसको मकान खाली करने को कहता तो कभी धमकी ,कभी मार पिटाई के लिए तत्पर ,,इसी प्रकार सन २००१ भी आ गया फ़िर इससे मकान खाली करने को कहा तो इसने उलटा घर में राखी एक प्लास्टिक की मशीन चोरी करके पिछले दरवाजे से कबादिये को बेच दी जब की हम लोग उस दिन धर्मशाला में राजपूत सभा का फंक्शन था उसमे मशगूल थे इसने मौके का फायदा उठाकर ये सब काण्ड कर दिया ,हमने उसकी रिपोर्ट लोक्विहार चोकी में लिखवाई परन्तु इसकी वहाँ अच्छी रसूख होने के कारण ऍफ़ .आई आर .तो क्या उलटा चोकी वाले ने आपसी लड़ाई झगडा ,प्रापर्टी विवाद करके ,ऍफ़ .आई .आर दर्ज करा दी क्योंकि अब तक प्रेम ,प्रेम ना रहकर प्राप्ति डीलर ,बल्कि एक क्रिमिनल बन चुका था पर मैं इस सबसे अनभिग्य था ये सब तो मुझेअब आकर पता चला की ये कितना बड़ा फ्रौड़ बन चुका है ,इसने और भी कितने ही लोगों को अपने चंगुल में फंसा रखा है ,मई यहाँ उनके नाम तो नहीं लिखूंगा परन्तु समय आने पर सबकी परत खोल दूंगा अब तो मैंने सबूत भी एकत्रित कर लिए हैं

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