सोमवार, 16 फ़रवरी 2009

लेखनी

लेखनी जब चलती है
लिखती चली जाती है
अपने ओष्ठ भींचकर
बोलती चली जाती है
जितना अम्रत भरा है
उसके उदर में
शब्द -शब्द कर
उंडेलती चली जाती है
बना देती है कविता
या बहा देती है सरिता
रक्त से ओष्ठ रंग
जगा देती है अस्मिता

1 टिप्पणी:

hem pandey ने कहा…

लेखनी जब चलती है
बना देती है कविता
जगा देती है अस्मिता
-सुंदर.