मेघा बरस रहे मरुस्थल में
प्रेम उमड़ रहा हो अंत;स्थल में
टपक रहा हो अम्रत गंगा जल में
झरने कल - कल करते सुंदर वन में
शरद पूर्णिमा के आँचल में
सोया शशि विभूति बनकर
चकोर करती न्रत्य उर्वशी सम
चन्द्र कांटी की प्रेयशी बनकर
शुक्रवार, 16 जनवरी 2009
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