बड़े भाई का प्यार या जिम्मेदारियों का अहसास ,अपने खानदान का प्रसार ,और संस्कारों का मायाजाल ,उच्च शिखर को ना छूने का मलाल ,अंत में अपनों के द्वारा हुआ हलाल क्योंकि दिल्ली में वो बन चुके थे दलाल --------एक गरीब किसान का बेटा घर में गरीबी की तंगी से परेशान होकर संस्कारों के सहारे अपनी थोडी सी शेक्षिक योग्यता लेकर दिल्ली आ गया ,और यहाँ जो भी कार्य मिला किया चाहे तनखा कुछ भी क्यों ना मिली ,४० रुपया माहवार पर भी नोकरी की ,पत्थर भी तोडे ,पत्थर उठाये भी ,हर प्रकार की मजदूरी की ,कम से कम खाया और ज्यादा बचाया और अपने भाई बंधू ,बहन ,माँ को सारा पैसा ग्राम में भेज देना ,किसी भी तरह तीनो भाई बहन को पढा लिखा कर किसी योग्य बनाना और उन सभी का जीवन बाखूबी निर्वाह करना यही ध्येय था उस बड़े भाई का ,अपने परिवार की प्रतिष्ठा को समाजमें स्थापित करना जिसको वो खो चुका था ,इसी प्रकार दिल्ली में रहते रहते ,आंधी तुफानो से लड़ते हुए एक एक पग मंजिल तय करते हुए सन १९७५ आ गया इसी बीच पिता श्री का भी इंतकाल हो गया वेसे उनका जीवित रहना ना रहना परिवार के लिए कोई मायने नहीं रखता था क्यों की उन्होंने कभी परिवार को सुपोर्ट ही नही किया था
जब की १९७४ में ही उसका व्यापार एक पार्टनर के सहारे से प्रगति के पथ पर था ,१९७५ में छोटा भाई भी दिल्ली आ गया ,उसे किसी दूसरी जगह पर काम पर लगवा दिया पर वो जितनी तनखा लाता उससे ज्यादा खर्च कर देता क्योकि उसका जीवन भी अभी तक गरीबी और मुफलिसी में बिता था ,दूसरे बड़े भाई को उससे प्यार भी बहुत था इसलिए उसे खर्च करने की पूरी छूट थी वो जितना पैसा भी मांगता ,बिना ये पूछे की वो क्या करेगा दे दिया जाता ,फ़िर उसने दिल्ली में नए नए दोस्त बनाने शुरू कर दिए उनमे कुछ दोस्त ऐसे भी थे जो राजनीती से भी सरोकार रखते थे अत; उसका रुझान भी राजनीती में होता गया और वो काम आदि छोड़कर पूरे दिन इधर उधर ही घूमता रहता था और रात को घर आना और खाना खाना और सो जाना उसकी यही दिनचर्या थी जब उसके भाई ने उसकी गतिविधियाँ देखि तो उसने उसे भी अपने पास ही ५००रुप्या माहवार पर रख लिया तब तक १९७७ में बड़े भाई ने अपनी शादी भी कर ली थी
अपनी शादी करने के बाद सम्पूर्ण परिवार को गाँव से दिल्ली अपने पास बुलवा लिया जिनमे एक बहन एक छोटा भाई और माताजी थी यद्यपि माता जी गाँव में ही रहना चाहती थी परन्तु माता जी ने अपने जीवन में बहुत दुःख झेलकर सभी छोटे -छोटे बच्चों को पाला था अत; बड़े ने सोचा की क्यों ना माताजी का बाकी जीवन सुखद बीते इसलिए माताजी को गाँव में अकेला नही छोड़ा था अपनी माँ के लिए बड़ा जो भी कर सकता था खूब दिल से किया उन्होंने जिस चीज की भी इच्छा जाहिर की उसे उसी समय पूरा किया गया
सन १९७८ के अंत में अपनी बहन की शादी बहुत बड़े घराने में कर दी बड़े घर में शादी का मतलब था अपनी ओकात से ऊपर जाकर शादी में खर्च करना पर बड़े ने अपनी बहन की खुशियों के लिए दिल खोल कर खर्च किया उस समय में अपनी बिरादरी में दूर दूर तक शोर हो गया की ,एक भाई ने अपनी बहन की शादी कितनी अच्छी की ,यद्यपि इस शादी में बड़े की टोटल जमा पूंजी के साथ कुछ रुपया बहार से भी लेना पडा पर अपनी बहन को अपने बापू की कमी महसूस ना होने दी इस शादी के कारण पूरी बिरादरी में नाम हो गया
इसके बाद तो घर में रिश्तेदारों का आना जाना शुरू हो गया और बीच वाले के रिश्ते आने प्रारम्भ हो गए अत; एक दिन उसकी भी शादी बड़े धूमधाम के साथ एक अच्छे घर में कर दी उसमे भी दिल खोलकर पैसा लगाया दो दो रिसेप्सन ,काकटेल जैसी पार्टियां दी सभी रिश्तेदार और गाँव वाले वाह वाह करने लगे इतना सब कुछ इसी लिए किया गया की उसके भाई को भी बापू की कमी महसूस ना हो दूसरे बिरादरी में बड़े आदमी बन्ने का समाचार जाए ताकि बचपन में लगा गरीबी का दाग धुल सके और खानदान का नाम रोशन हो ,और इस शादी के बाद जैसा सोचा था वैसा ही हुआ
समय अच्छा चल रहा था भगवान् की पूरी पूरी क्रपा थी बिजनैस भी पूरे जोर शोर से चल रहा था ,कहते है की ऊपर वाला जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है ठीक वेसा ही बड़े के साथ हो रहा था इसलिए किसी प्रकार की चिंता नही थी सभी कार्य ठीक समय पर हो रहे थे पूरा परिवार बड़े की बहुत इज्जत करता था दोनों छोटे भाई भी पूरी तरह से आज्ञाकारी थे अगर धुप में खड़े होने को कह देते तो चुपचाप खड़े रहते थे अत; दोनों भाइयों को बिजनेस करा दिया एक को प्लास्टिक की दूकान और दुसरे को प्लास्टिक की फेक्टरी लगवा कर दे दी जिसमे बड़े ने लाखो रुपया लगा दिया ये सब कुछ १९८३ तक हो गया था ,काम काज ठीक प्रकार से चल रहा था भगवन की क्रपा थी अत; बड़े भाई ने दोनों भाइयों से कभी कोई हिस्साब या ब्याज तक नही मांगा क्योंकि उसे विश्वास था की जिस दिन भी भाइयों से हिसाब या पैसा मांगेगा वो मना नही करेंगे बल्कि उनके व अपने घरों के सम्पूर्ण खर्चे भी बड़ा ही करता था यानी की रसोई तक का सामान भी बड़े के पैसों से ही आता था यानि की घर के सभी खर्चे बड़ा ही करता था ,शादी ब्याह अथवा लेनदेन में भी कोई सा भाई कुछ भी नही देता था अत; घर में शान्ति भी रहती थी परन्तु उसके बाद भी घर के सभी मैम्बर अन्दर ही अन्दर कुछ ना कुछ स्वांग रचते ही रहते थे परन्तु बड़ा भाई इन बातों को कोई भाव नही देताथा इश्वर की क्रपा थी सभी कार्य सुचारू रूप से चल रहे थे ,चारो और जयजयकार हो रही थी ,उसी समय लोकसभा के लिए चुनावों की घोषणा हो गयी ,
जब की १९७४ में ही उसका व्यापार एक पार्टनर के सहारे से प्रगति के पथ पर था ,१९७५ में छोटा भाई भी दिल्ली आ गया ,उसे किसी दूसरी जगह पर काम पर लगवा दिया पर वो जितनी तनखा लाता उससे ज्यादा खर्च कर देता क्योकि उसका जीवन भी अभी तक गरीबी और मुफलिसी में बिता था ,दूसरे बड़े भाई को उससे प्यार भी बहुत था इसलिए उसे खर्च करने की पूरी छूट थी वो जितना पैसा भी मांगता ,बिना ये पूछे की वो क्या करेगा दे दिया जाता ,फ़िर उसने दिल्ली में नए नए दोस्त बनाने शुरू कर दिए उनमे कुछ दोस्त ऐसे भी थे जो राजनीती से भी सरोकार रखते थे अत; उसका रुझान भी राजनीती में होता गया और वो काम आदि छोड़कर पूरे दिन इधर उधर ही घूमता रहता था और रात को घर आना और खाना खाना और सो जाना उसकी यही दिनचर्या थी जब उसके भाई ने उसकी गतिविधियाँ देखि तो उसने उसे भी अपने पास ही ५००रुप्या माहवार पर रख लिया तब तक १९७७ में बड़े भाई ने अपनी शादी भी कर ली थी
अपनी शादी करने के बाद सम्पूर्ण परिवार को गाँव से दिल्ली अपने पास बुलवा लिया जिनमे एक बहन एक छोटा भाई और माताजी थी यद्यपि माता जी गाँव में ही रहना चाहती थी परन्तु माता जी ने अपने जीवन में बहुत दुःख झेलकर सभी छोटे -छोटे बच्चों को पाला था अत; बड़े ने सोचा की क्यों ना माताजी का बाकी जीवन सुखद बीते इसलिए माताजी को गाँव में अकेला नही छोड़ा था अपनी माँ के लिए बड़ा जो भी कर सकता था खूब दिल से किया उन्होंने जिस चीज की भी इच्छा जाहिर की उसे उसी समय पूरा किया गया
सन १९७८ के अंत में अपनी बहन की शादी बहुत बड़े घराने में कर दी बड़े घर में शादी का मतलब था अपनी ओकात से ऊपर जाकर शादी में खर्च करना पर बड़े ने अपनी बहन की खुशियों के लिए दिल खोल कर खर्च किया उस समय में अपनी बिरादरी में दूर दूर तक शोर हो गया की ,एक भाई ने अपनी बहन की शादी कितनी अच्छी की ,यद्यपि इस शादी में बड़े की टोटल जमा पूंजी के साथ कुछ रुपया बहार से भी लेना पडा पर अपनी बहन को अपने बापू की कमी महसूस ना होने दी इस शादी के कारण पूरी बिरादरी में नाम हो गया
इसके बाद तो घर में रिश्तेदारों का आना जाना शुरू हो गया और बीच वाले के रिश्ते आने प्रारम्भ हो गए अत; एक दिन उसकी भी शादी बड़े धूमधाम के साथ एक अच्छे घर में कर दी उसमे भी दिल खोलकर पैसा लगाया दो दो रिसेप्सन ,काकटेल जैसी पार्टियां दी सभी रिश्तेदार और गाँव वाले वाह वाह करने लगे इतना सब कुछ इसी लिए किया गया की उसके भाई को भी बापू की कमी महसूस ना हो दूसरे बिरादरी में बड़े आदमी बन्ने का समाचार जाए ताकि बचपन में लगा गरीबी का दाग धुल सके और खानदान का नाम रोशन हो ,और इस शादी के बाद जैसा सोचा था वैसा ही हुआ
समय अच्छा चल रहा था भगवान् की पूरी पूरी क्रपा थी बिजनैस भी पूरे जोर शोर से चल रहा था ,कहते है की ऊपर वाला जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है ठीक वेसा ही बड़े के साथ हो रहा था इसलिए किसी प्रकार की चिंता नही थी सभी कार्य ठीक समय पर हो रहे थे पूरा परिवार बड़े की बहुत इज्जत करता था दोनों छोटे भाई भी पूरी तरह से आज्ञाकारी थे अगर धुप में खड़े होने को कह देते तो चुपचाप खड़े रहते थे अत; दोनों भाइयों को बिजनेस करा दिया एक को प्लास्टिक की दूकान और दुसरे को प्लास्टिक की फेक्टरी लगवा कर दे दी जिसमे बड़े ने लाखो रुपया लगा दिया ये सब कुछ १९८३ तक हो गया था ,काम काज ठीक प्रकार से चल रहा था भगवन की क्रपा थी अत; बड़े भाई ने दोनों भाइयों से कभी कोई हिस्साब या ब्याज तक नही मांगा क्योंकि उसे विश्वास था की जिस दिन भी भाइयों से हिसाब या पैसा मांगेगा वो मना नही करेंगे बल्कि उनके व अपने घरों के सम्पूर्ण खर्चे भी बड़ा ही करता था यानी की रसोई तक का सामान भी बड़े के पैसों से ही आता था यानि की घर के सभी खर्चे बड़ा ही करता था ,शादी ब्याह अथवा लेनदेन में भी कोई सा भाई कुछ भी नही देता था अत; घर में शान्ति भी रहती थी परन्तु उसके बाद भी घर के सभी मैम्बर अन्दर ही अन्दर कुछ ना कुछ स्वांग रचते ही रहते थे परन्तु बड़ा भाई इन बातों को कोई भाव नही देताथा इश्वर की क्रपा थी सभी कार्य सुचारू रूप से चल रहे थे ,चारो और जयजयकार हो रही थी ,उसी समय लोकसभा के लिए चुनावों की घोषणा हो गयी ,
बीच वाले भाई ने बड़े भाई से इस चुनाव में खडा होने की इच्छा व्यक्त की ,बड़े भाई ने सोचा की यही वो समय है जब एक पंथ और दो काज हो सकते है एक तो भाई की इच्छा पूर्ण हो जायेगी दूसरे अपनी बिरादरी में नाम भी हो जायेगा की अब तो कुंदन मुकद्दम के पोते बड़े आदमी हो गए हैं ,इससे पूरे क्षेत्र और चोहान बिरादरी में बहुत नाम हो जायेगा ,यद्धपि बड़ा भाई ये भी जानता था की जिस भाई को राजनीति का क ,ख ,ग भी नहिआता और नाही बोलना तक आता तो भला चुनाव कैसे फाइट कर सकता है और वो भी एम् ,पि का जिसमे की बड़े -बड़े धुरंधर भी मात खाते हैं ,फ़िर बड़े का भाई तो भला है कौन से खेत की मूली ,परन्तु सबसे बड़ा फायदा तो नाम का होना था ,बस यही तो चाहिए था बड़े भाई को ,इसलिए बड़े ने बिना सोचे समझे ही हाँ कर दी ,जब हाँ कर दी तो बीच वाला बोला की पैसा कहाँ से आयेगा तो बड़े ने कहा की तुम जाकर पर्चा भरो बाकी का हमारा काम है ,
तब जाकर बीच वाला किसी भी पार्टी से टिकेट की जुगाड़ में लगा ,पर आप सोचिये की ५ या ७ साल केवल किसी पार्टी में लगाने भर से तो टिकिट मिल नहीं जाता इसलिए टिकिट तो मिला नहीं अत; वो फ़िर निर्दलीय ही खड़े हो गए ,दो पत्ती के निशाँ पर और उसमे बड़े भाई ने ७,८,लाख रुपया फूंक दिया पर नतीजा निकला वो ही डाक के तीन पत्ते ,पर हाँ इतना जरूर था की सारे इलाके में नाम हो गया और बीच वाले के सम्बन्ध भी अच्छे अच्छे नेताओं से हो गए जिसका लाभ उसने आगे चलकर बड़े भाई के ख़िलाफ़ भी उठाया ,उसको बरबाद करने में उसने सभी शाम दाम दंड भेद अपना लिए ,इन सबका जिक्र शायद आगे चलकर किया जाए ,इस प्रकार सन १९८४ में बड़े ने खूब पैसा फूंका ,पर भाई को वो हसरत पूरी कर दी जिसको की वो स्वयम भी अपने जीवन में पूर्ण कर सके और शायद हमारे पिताजी भी होते तो वो भी पूरी नही कर पाते
सन १९८५ में पहले तो बड़े ने यह प्लाट खरीदा जिस पर की वोही छोटा भाई अपना हक जताने की कोशिश कर रहा है जब की इसमे उसने एक भी पैसा नही दिया और नाही एक घंटे फिजिकल वर्क किया फ़िर भी कहता है की इसमे भी मेरा हिस्सा है खेर छोडो और बात करते हैं ,तो ये जमीन लगभग ४ लाख में खरीदी और इस पर कंस्ट्रक्सन शुरू कर दी उस पर क्या और कितना खर्च हुआ इसका वर्णन करने की जरुरत नहीं है क्योंकि मकान तो पैसों से ही बनते हैं बातों से नहीं ,और इसी साल में सबसे छोटे भाई की भी शादी की जिसमे काफ़ी पैसा खर्च किया पर ये शादी बीच वाले से भी अच्छी की थी ,मैं तो केवल इतना ही कहूंगा ,मेने इस भाई के लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण परिवार के लिए मेने वो ही फर्ज निभाया जो की मेरे पिता जी को निभाना था और सच मानो तो इस परिवार के लिए मेने जो भी कुछ किया मेरे पिताजी भी नहीं करते ,पर इस सबके बावजूद भी मेरे परिवार के सदस्य सदेव ही मेरे ख़िलाफ़ रहे ये सब तो इश्वर ही जान सकता है आख़िर क्योँ
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