बुधवार, 14 जनवरी 2009

स्वप्न

सुसुप्त अवस्था में
होता है स्वप्नागमन
कभी अन्तरिक्ष में उड़ान
तो कभी धरा पर विचरण
कभी प्रणय निवेदन
तो कभी समागम
कभी नयनों का मिलन
तो कभी हवाई चुम्बन
कभी भर देते हैं
झोली में सुख आनंद
तो कभी भर देते हैं
अंतर्मन में द्वुंद
कभी प्रांगण में
पुष्पों का ढेर
कभी सोने चांदी के
बर्तनों में भोजन
कभी अश्व रथ पर हो सवार
भ्रमण करते कई सौ योजन
निकल जाते है
मीलों दूर
खुलती हैं आँखें तो
कर रहे होते हैं
बिस्तर पे शयन
छोड़ देते हैं
अमिट छाप
जो मिट नहीं पाती
जाग्रत अवस्था में भी
उनकी भीनी -भीनी गंध

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