रविवार, 30 नवंबर 2008

कलयुगी वातावरण

मेरी सहिष्णुता
मेरा वात्सल्य
मेरे सिद्धांत ही
सत्ये पथ में रोढे बनकर
गला घोटने को
स्व्येम के हस्तों से
प्रेरित कर रहे हे,
अपनो के प्रति आकुलता
सर्वस्व के हेतु व्याकुलता
सर्व धर्मों के प्रती
समभाव श्रधा
कलयुगी वातावरण में
स्व्येम मुझको ही
लज्जित कर रहे हे,
मेरी दान शीलता
क्षमा याचना स्वीकारोक्ति
निस्वार्थ प्रकर्ती प्रेम
असत्य से विमुखता
सभी मेरा दामन फाड़
मृत्यु आलिंगन हेतु
प्रयास कर रहे हैं
मेरा त्याग तपस्या
मेरा वैचारिक शक्ति
मेरी आतम शुद्धि संवेदन शीलता
मेरा निश्छल प्रेम
मेरे उद्देश्य, वचन
शायद कलयुगी वातावरण में
मुझे ही दूषित कर रहे हैं...

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