मैं अपनी चर्म से
जूतियाँ बना कर भी
तुझे पहना दूँ
या अपनी हड्डियों का
अंजन भी बना
तेरी ममता मयी
नैनों में लगा दूँ
या अपने रक्त की
एक एक बूंद से
तुझे सर्वांग सनान करा दूँ
या अपनी गर्दन काटकर
तेरे चरणों में
भेंट चढा दूँ
तब भी में समझूंगा
की नही उतार पाया
तेरे दूध का बदला
क्यूंकि वो दूध नही
बल्कि अमृत हे
और वेह केवल
समुंदर मंथन से ही
मिलना सम्भव हे
और समुंदर मंथन
मेरे हेतु मील का पत्थर हे
इस ही लिए सम्पूर्ण जगत
ममता का बदला
उतारने के नाम पैर
नीरउत्तर हे ...
रविवार, 30 नवंबर 2008
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