मेरे द्रवित अश्रु
कपोलो पैर गिरे
तो कपोल गल गए
वस्त्रों पर गिर पड़े
तो वस्त्र जल गए
पत्थरों पर गिर पड़े
तो पत्थर पिघल गए
धरा पर गिरे तो
उसमे गड्ढे बन गए
प्रवाहित नदी में गिरे तो
जल खारा कर गए
अंगारों पर गिरे तो
शोला बन गए
घाव पर गिरने पर
फफोले बन गए
अतृप्त पर गिरने पर
उसे तृप्त कर गए
जिसके नैनों में बसे
तो नदी बन बह गए
शव पर गिर पड़े तो
जीवन दान दे गए
पर जिनके हेतु बहे
उन्होंने लगाये कह कहे...
रविवार, 30 नवंबर 2008
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