शनिवार, 29 नवंबर 2008

मैं पागल ही तो हूँ

में कभी कभी
उड़ती उड़ती बातें सुनता हूँ
लोग मुझे पागल कहते हैं
हाँ हाँ मैं पागल ही तो हूँ
क्यूंकि वाही लोग मुझे पागल कहते हे
जो मेरी वास्तविकता से परिचित हैं
उन्होंने मुझे देखा हे परखा हे
और तभी ये निष्कर्ष निकला होगा
की मैं पागल हूँ
वरना वो ऐसा क्यों कहते
पागल तो में हूँ ही ना
वे सही कहते हे
मैं पागल ही हूँ क्यूंकि
मैं कर्म ही ऐसे करता हूँ
कलयुग में सतयुगी बातें करता हूँ
कलयुग में वे छीन ते हैं झपट ते हैं
और मैं सर्वस्व देने की बात करता हूँ
आख़िर हूँ न में पागल...
मैं जिस से प्रेम करता हूँ
तो साचा प्रेम करता हूँ
और विरोध करता हूँ
तो भी सच्चा विरोध करता हूँ
पर वे तो प्रेम व विरोध
दोनों ही झूटा करते हैं
जिस थाली में खाते हैं
उस ही मैं छेद करते हैं
मुख में तो राम राम
बगल में चुरी का प्रयोग करते हैं
जरा सोचो
मैं पागल नही तो और क्या हूँ ...
लोग अन्याय करते हे
और अन्याय सेहन भी करते हैं
पैर मैं ऐसा नही करते
बल्कि नयाये हेतु लड़ता हूँ
अन्याय सेहन नही करता
और न ही अन्याय करता हूँ
मुझे केवल न्याय चाहिए
अब जरा सोचिये
कलयुग में न्याय कहाँ
न्यायालय छोटे पड़ गए हैं
दंडाधिकारी ही
दंड के अधिकारी बन गए हैं
जरा सोचो और बतायो
मैं पागल नही तो क्या हूँ...
लोग भ्रष्टाचारी बनते हैं
भ्रष्टाचार भली भाँती करते हैं
लाखों करोडो कमा कमा कर
अपनी खाली तिजोरियां भरते हैं
पैर मैं नही करता
बल्कि भ्रष्टाचार से लड़ता हूँ
तो सरकारी हुक्मरान कहते हैं
आचार तो तुम हमारे साथ
भ्रष्ट कर रहे हो
वो कहते हे हमें भी दो
और ख़ुद भी खायो
इस ही को संसारिकता कहते हैं
और समय के साथ चलना कहते हे
पैर मैं नही समझ पाटा
उनकी कलयुगी सलाह
जरा सोचो
मैं पागल नही तो क्या हूँ...
लोग कहते हैं क्रिशन ने कहा था
कलयुग में सब उल्टा होगा
तो तुम ही क्यूँ
सुलटा करने में लगे हो
क्या तुम द्वापर के
भगवन क्रिशन से भी बड़े हो
जो क्रिशन ने कहा
वो ही तो सत्य होगा
पर तुम्हारे जैसे पागलों की कौन सुनेगा
पर मैं उन जैसा बन नही सकता
जरा सोचो मैं पागल ही तो हूँ...

कोई टिप्पणी नहीं: