शनिवार, 29 नवंबर 2008

में तो क्या चीज़ हूँ

वे पुष्प
जिन्होंने सदैव
शूलों को
वात्सल्य दिया
हृदये से लगाया,
और स्व्येम का
वृक्ष से
बिछोह होने पर
किसी को सुगंध
किसी को गजरा
किसी को सौन्दर्यता
किसी को गले का हार बन
मान बढाया या
प्रभु के चरणों में पड़
भक्त का भगवन से
परिचय करवाया
उसको भी
मुरझा जाने पर
गले से
जूडे से
चरणों से
उतार कर फेंक देते हे
फ़िर में तो क्या चीज़ हूँ...
वे माँ बाप
जिन्होंने इस संसार में
प्रतेक मानव को
इस पृथ्वी रूपी स्वर्ग पर
पदार्पण कराया
ममता दी
वात्सल्य दिया
लोरिया गा गा कर
रातों को सुलाया
स्वेयम गीले में सोये
बच्चो को सूखे में सुलाया
परिश्रम कर कर के
पढाया लिखाया
स्तनों से चिपटाकर
दुग्ध पान करवाया
कितने ही संस्कार दे
योग्य बनाया
एवम ब्याह तक रचाया
उनकी ही संतानों ने
उनकी शक्ति कम होने पर
बुडे हो जाने पर
कचरा समझ कर
फेंक देते हैं
आत्महत्या करने को
मजबूर कर देते हैं
फ़िर में तो क्या चीज़ हूँ...
वही बापू
वही बोस
चंद्रशेखर आजाद
जिन्होंने भारत माता को
सभी भारत वासियों को
जाती पांती का भेद न कर
गोरो की गुलामी से
आजाद कराया
स्वेयम बेडियाँ पहनी
जेल में यातनाए भोगी
गले में फांसी लगाई
कचरे की टोकरियाँ उठाई
गालियाँ खायी
अपना सर्वस्व देकर
जीना सिखाया
भारत का नाम
ऊँचा कराया
आज स्वर्गवासी होने पर
कई दशक बीत जाने पर
वाही भारत वासी
जिनको कभी गले लगाया
आज उनको गालिया देकर
देश द्रोही
हरिजन द्रोही
न जाने क्या क्या बता रहे हे
आए दिन उनपर
कीचड उछाल रहे हे
फ़िर में तो क्या चीज़ हूँ...

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