में सेंतीस वर्षो से
युद्ध रत हो
किसी न किसी से
युद्ध करता आ रहा हूँ
और सदेव
एक योधा की भांति
सिर पर कफ़न या
केसरिया पगड़ी बाँध
जीते योधा की भांति
जीवन जीता आ रहा हूँ
मुझे कोई हरा न सका
क्यूंकि में अजेय हूँ...
कितनी ही चम्गाद्रों को
पुराने खंडहरों से निकाल
उनकी त्रष्णा व क्षुधा को
स्वयेम के ही मॉस से
संतुष्ट और शांत कर
जीवन देता आ रहा हूँ
पर वे स्वाभाव वश
मुझे नोच नोच कर
भक्षण करते हुए भी
हराने का प्रयास कर रहे हे
पर वे मुझे हरा न सके
क्यूंकि में अजेय हूँ...
शुक्रवार, 21 नवंबर 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें