सोमवार, 1 दिसंबर 2008

प्रभु कृपा

मुझे प्रभु ने निर्मित कर
स्वयं स्वरुप का भवन दिया है
ईंट पत्थर सीमेंट नहीं लगाया
हाड मांस चर्म से सर्जन किया है ,
मुझे शक्तिशाली बनाने हेतु
आत्मबल साक्षात् किया है
निस्वार्थ सेवा करने हेतु
आत्मा और वाणी का स्थापन किया है ,
विचार कुविचारों का विश्लेषण हेतु
विवेक का भंडार दिया है
असत्य पर सत्य की विजय हेतु
चिंतन से ओतप्रोत किया है ,
नेसर्गिक आनंद प्राप्ति हेतु
इन्द्रीओं का भरपूर भंडार दिया है
आत्मिक शांती प्राप्त करने हेतु
प्रेम भक्ति भय का आविष्कार किया है

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