मंगलवार, 9 दिसंबर 2008

नारी की दुर्दशा

शहरों को छोड़
ग्रामों में जाइए
चूल्हे चौके से ले
खेतों में निहारिये
वहाँ नारी की
दुर्दशा देख
दो चार घडे
अश्रु बहाइये
वहाँ नारी नहीं
केवल घड़ी है
नारी जहाँ पर थी
आज भी वहीँ पर खड़ी है
नारी शिक्षा का
हो रहा प्रचार
स्कूल कालिजों की
हो रही भरमार
नारी मुक्ति के
आन्दोलन हो रहे है
बड़े बड़े भाषण
जगह -जगह हो रहे है
पर नारी आज भी
निर्वस्त्र खड़ी है
नारी जहाँ पर थी
आज भी वहीँ खड़ी है
उसके अधिकारों का
संसद में हो रहा बखान
नर और नारी हैं
सब एक समान
दहेज़ रूपी दानव के
अभाव से ग्रसित
गरीब बाप की बेटी
घर में कंवारी पड़ी है
या अधेड़ से कर गठबंधन
नवयौवना अचेत पडी है
नारी जहाँ पर थी
आज भी वहीं खड़ी है

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