तुम्हारा लावण्या पूर्ण सौन्दर्य
चंद्रमुखी ओजस्व
म्रग नैनी नैन
शीतल स्वभाव
विवेकपूर्ण बुद्धि
देवत्व प्रवर्ति
पियुशीय स्फुटित स्वर
नीर सम निर्मलता
पंकज सी कोमलता
सौष्ठव शरीर व्
श्वेत आवरण में छिपी
तुम्हारा मूर्त रूप देखकर
ना जाने किस भ्रान्ति से
मेरा मस्तक
झंनाने लगता है
भोंहें फड़कने लगती हैं
मुख के भाव लुप्त हो जाते है
ह्रदय व तन
कम्पायमान हो जाता है
टांगें लडखडानेलगती है
स्पंदन सा
समस्त तन में समा जाता है
बुधवार, 10 दिसंबर 2008
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