बुधवार, 10 दिसंबर 2008

पुजारिन

तुम्हारा लावण्या पूर्ण सौन्दर्य
चंद्रमुखी ओजस्व
म्रग नैनी नैन
शीतल स्वभाव
विवेकपूर्ण बुद्धि
देवत्व प्रवर्ति
पियुशीय स्फुटित स्वर
नीर सम निर्मलता
पंकज सी कोमलता
सौष्ठव शरीर व्
श्वेत आवरण में छिपी
तुम्हारा मूर्त रूप देखकर
ना जाने किस भ्रान्ति से
मेरा मस्तक
झंनाने लगता है
भोंहें फड़कने लगती हैं
मुख के भाव लुप्त हो जाते है
ह्रदय व तन
कम्पायमान हो जाता है
टांगें लडखडानेलगती है
स्पंदन सा
समस्त तन में समा जाता है

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