शनिवार, 6 दिसंबर 2008

व्यंग्य

तूने उसी तरु को काटा
जिसने दिया सहारा
फल फूल लगे थे जब तक
तब तक उसे सराहा
जब उस पर आया पतझड़
तूने कर लिया किनारा
तेरा जीवन गिद्धों जेसा
फिरेगा मारा-मारा
उस दडबे को खंडहर बनाया
जिसमें किया बसेरा
रात-दिना आँचल में सुलाकर
छाया बन पुचकारा
जब तुझे मिली संपदा
उसको तूने दुत्कारा
तेरा जीवन बंजारों जैसा
भामता फिरेगा जीवन सारा
तूने उसी नदी को कोसा
जिसने नीर पिलाया
तन तो तेरा धोया अब तक
मन ना धूवन पाया
जेसे नदियाँ सूखन लागी
तूने किया किनारा
तेरे हिय जो गंद छुपा हे
दोयेगा जीवन सारा





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