बुधवार, 10 दिसंबर 2008

नारी की पुकार नोजवानों और उनके अभिभावकों से

मेरे देश के नोजवानों
मेरे प्रशन का उत्तर दो
आज भी तुम क्यों ?
मेरे अभिभावकों से
दहेज़ मांगते हो ,
क्या मैं लूली हूँ
या लंगडी हूँ
या बहरी और गूंगी हूँ
या मुझे गले बाँध
ढोल पीटने का
कोई टैक्स मांगते हो
मेरे सौन्दर्य का रसपान हेतु
नारीत्व का अपमान हेतु
वात्सल्य का आह्वान हेतु
मेरी रक्षा का दंभ भरने वालो
अपनी जीविका चलाने हेतु
कन्यादान के नाम पर
अर्थदान की मांग करने वालो
भिक्षुक की भांति
झोली फेलाकर
दंडवत प्रणाम कर
पुरुषत्व का झूठा गर्व कर
किन्नरों की भांति
तालियाँ बजा-बजा कर
दहेज़ के लालचियो
तुम दहेज़ क्यों मांगते हो
आज २१वी शदी
चल रही है
नारी प्रत्येक क्षेत्र में
पुरुषों से आगे चल रही है
पर वो तुम्हारी तरह
असत्य गर्व नहीं करती
इसी लिए पुरूष प्रधान
समाज में
कंधे से कंधा मिलाकर
तुम्हारे साथ चल रही है
पर ये उसकी नियति है
जो प्रणय सूत्र में
बंधने हेतु
दहेज़ रुपी
मूल्य देकर भी
नोकरानी बनने हेतु
याचना कर रही है
अभी समय है
निद्रा को त्यागो
और कन्याओं के
अभिभावकों से
दानव रुपी दहेज़ मत मांगो

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