जब निजी तन में
अपनों के व्यंग वाणं लगे
आहत हुआ मन किंचित सा
और जीवन का संहार हुआ
कोई प्रशन करे आकर मुझसे
क्यों ?
मेरो ने मेरा संहार किया
क्या उत्तर दूँ कैसे तुष्ट करूँ
जो मेरे संग ऐसा व्यव्हार हुआ ।
ना आंच कभी आने दी उनपर
जिन्होंने मेरा तिरिस्कार किया
आशीर्वादों की माला अर्पण कर
स्वयेम हस्तों से श्रृंगार किया
पीड़ा इस बात की हे मुझको
ऐसा भी क्या मेने पाप किया
शायद अपराधी हूँ उनसब का
जिन्होंने कटाक्ष प्रहार किया ।
शनिवार, 6 दिसंबर 2008
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