मेरे बिन घर भूतों का डेरा है
दीपक नहीं जलता रहता सदैव अँधेरा है
जहाँ मेरा आवास नहीं
लक्ष्मी का वहां वास नहीं
देवता भी नमन नहीं करते
जिस भू पर ना मेरे पैर पड़े
जहाँ पर ना मेरा पैहरा है
सदैव युद्ध होता रहता है
क्रांति भी वहाँ नहीं आती
शान्ति भी छुपकर भाग जाती
चूल्हे भी ठंडे रहते हैं
अग्नि कभी ना जल पाती
मटके भी फूटे रहते हैं
प्यास कभी ना बुझ पाती
उन्नत्ती परिवार की रुक जाती
जिस ग्रह में में ना जा पाती
उत्त्पत्ती संसार की रुक जाती
क्योँ की ना सरंचना हो पाती
कुल के कुल नष्ट हो जाते
जहाँ पर में ना पहुँच पाती
संयम कूट -कूट कर भरा मुझमे
में इसी लिए सब कुछ सहती जाती
सभी नातों को भली भांती समझ
खूब निभाना मुझको आता है
माँ बाप और भाई बंधू
पति सास ससुर से क्या नाता है
इन सबके हेतु मेरे जीवन में
त्याग ही मेरा भ्राता है
मंगलवार, 9 दिसंबर 2008
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2 टिप्पणियां:
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shukriya, aapki sarahna hee meri prerna he..
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