अपने लगे रहे हमेशा इसी फिराक में
जलता रहूँ में जैसे बाती जले चिराग में
देखकर विषैले दांत उनके
जलता रहूँ में जैसे बाती जले चिराग में
गले से लगाया था जिन्हें आज तक
वो ही डंक मार गएदेखकर विषैले दांत उनके
हम तनिक घबरा गए
उनकी मुहब्बत की खातिर
हम बिकते चले गए
जब बोली उनहोंने ही लगा दी तो
हम जीते जी मर गए
उनकी बेपर्दगी से हम
रुसवा तो हो गए
रोना भी चाहा जब हमने
हमारे अश्क ही सूख गए
घर फोड़ वों ने घर तोड़कर
खंडहर बना दिया
ख़ुद तो ना रह सके
हमको भी घर से भगा दिया
जिस ममता को सजदा किया
उसने ही ठोकर मार दी
हम ठोकरें खा-खा कर भी
सजदे करते चले गए
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