शनिवार, 6 दिसंबर 2008

हमारे अपनों के ख्वाब

हर शख्स परेशान है
अपने ही घर में
अपने ही घूर रहे है
गिद्धों सी नजर में ,
जिन्हें मोहब्बत करते दुश्मन
महफूज है जहाँ में
उन्हें कत्ल करते अपने
ले जाके बिया बा में ,
सब छीनकर माले असबाब
रात दिन देखते है खवाब
केसे दे कटोरा हाथ में
ताकि भीख मांगे नवाब ,
कर लेते है हसरतें पूरी
पाते है सेल्फ मेड का खिताब
खुल जाने पर असलियत
पीना पड़ता है गर्म तेजाब

कोई टिप्पणी नहीं: