गुरुवार, 4 दिसंबर 2008

अपनों के कारण जो स्वयम पर बीती

में दर्दे दिल लिए
दर्द भरी राहों पर
अकेला ही चलता रहा
दर्द देने वाले
दर्दे दवा के बिना
दर्द भरी दास्ताँ लिये
रिश्ते बनाते चले गए
में दर्द सहता रहा
दर्द ही फोडा बन गया
पर रिश्ते निभाता रहा
जब फोडे से मवाद रिसने लगा
बदबू कुछ आने लगी
सारे रिश्ते दम तोड़ गए
अब में अकेला ही
दर्द भारी जिन्दगी जी रहा
और फोडा केंसर बन गया
दर्द भी बढता गया
पर अब वो दर्द ही मेरे लिए
दर्दे दवा है बन गया

कोई टिप्पणी नहीं: