सोमवार, 8 दिसंबर 2008

अपनों का खून -खून नहीं

खुशियाँ लुप्त हो गयीं
दुःख के बादल छा गए
आकाश पीला हो गया
अपनों का खून-खून नहीं
अब पनीला हो गया
सज्जन दुर्जन हो गए
दुर्जन अति दुर्जन हो गए
हवाओं का रुख गर्म हो गया
चांदनी को ग्रहण लग गया
अपनों का खून -खून नहीं
अब पनीला हो गया
कलियाँ खिलती नहीं
पुष्प भी मुरझा गए
पराग बन्ना बंद हो गया
भोंरा कमजोर हो गया
अपनों का खून -खून नहीं
अब पनीला हो गया
क्रोध सशक्त हो गया
अंहकार रगों मैं बस गया
स्वार्थ सर्वोपरी हो गया
धन ही पितामह हो गया
अपनों का खून -खून नहीं
अब पनीला हो गया

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