बुधवार, 10 दिसंबर 2008

नारी ही सर्वस्व है,

वेदों की तुम रिर्चा हो
रामायण की हो पंक्ति
महाभारत की द्रोपदी हो
महाउप्निषद की हो सूक्ति ,
देवों की तृप्ति हो
मानव की हो श्रुति
चाणक्य की युक्ति हो
संसार की हो मुक्ति ,
वेदव्यास की एकाग्रता हो
भीष्म पितामह की स्कक्ति
अर्जुन की हो तुम हो साधना
मानवमात्र की हो भक्ति ,
महामाया महायोगिनी हो
मृतिका से बनी आक्रति
हरिश्चंद्र की तारा हो
प्रणय सूत्र की सावित्री ।

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