मति जिनकी सुद्रढ़ रहे ,कहलाते यशस्वी वीर ,
बिना मति के सिद्ध भी ,बावरे होते मीर
सुख अमृत का पान कर ,दुखिया है संसार ,
जो दुखों को सुख कहे ,बस उसका बडा पार
कल -कल करते जगमुआ ,कूच किया संसार ,
जिसको आज ने जान लिया ,उसका भाया उद्धार
रोते हैं सब चैन को ,सगे संबंधी और नारी ,
आदमी को कौन रोत है ,चाहे मरे हजारों बार
तूने किसी को क्या दिया ,ना किया कभी उद्धार ,
अपना बेडा गर्क कर ,क्यूँ खोले नर्क द्वार
गुरुवार, 18 दिसंबर 2008
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