बुधवार, 10 दिसंबर 2008

कवी का कथन नारी हेतु

हे कोमलांगी
सौन्दर्य की देवी
त्याग की मूर्ती
सरंचना की स्र्जन्हारी
ममता की भ्रामरी
शांती की पुजारिन
अन्नपूर्णा शक्तिदात्री
तू रो मत
रुद्र ना बहा
चिंता ना कर
चिता ना सुलगा
आत्महत्या ना कर
शोषण करने वालों से लड़
शक्ती का प्रदर्शन कर
मंत्र पूजित जल से
सभी को अभिमंत्रित कर
अपना रौद्र रूप दर्शा
शोषण करने वालों को
स्वाहा -स्वाहा कर
महाकाली का आह्वान कर
सभी देवी देवताओं
यक्ष गन्धर्वों का
आशीर्वाद प्राप्त कर
तू गंगा यमुना है
कृष्णा कावेरी है
महादेवी गोदावरी है
पावन सरिता बनी
सभी की तृष्णा शांत कर
प्यास बुझाती
मेल को धोती
चितवनों को निर्मल करती
माधवी की भांति
त्याग की ज्योति को
अक्षुण्य रखती
बस बहती जा
बस बहती जा

कोई टिप्पणी नहीं: