मंगलवार, 9 दिसंबर 2008

त्याग की मूर्ती कन्यायें

केवल पुत्रिया ही
अपने अभिभावकों
जन्मदाताओं को
असीम अगाध अथाह
प्रेम करती हैं
बल्कि उनके प्रत्येक वचन पर
स्वयम को अर्पण कर
उनकी आनबान को
सम्मुख रखकर
सम्पुरण जीवन तक का
बलिदान कर देती हैं
वो पुष्प की कोमल कलियाँ
कंटकों के मध्य रहकर
नागफनी घास की भांति
सूखी बंजर भूमि में
आन की खातिर
प्रेमालाप व् वार्तालाप कर
अपने यौवन तक को
आहूत कर राख कर लेती हैं
जब की अभिभावक
न्याय भी नहीं करते
सम्पुरण अधिकार
पुत्रों को अर्पण कर
उनके अधिकारों का
हनन कर लेते हैं
स्वार्थ से ग्रस्त होकर
वंश बेल बढाने हेतु
पुत्रों के लालच में
इन भोलीभाली निश्छल
अजन्मी कन्याओं की
भ्रूण ह्त्या तक करा देते हैं
आख़िर ऐसा घोर अन्याय क्योँ
क्या कन्या हेतु
यही नियति है
या ये कुल वीरांगनाएं ही
मानव जात में
एक विसंगति है

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