मंगलवार, 23 दिसंबर 2008

ईमानदारी जब बोलती है

ईमानदारी जब बोलती है
अपना कंठ खोलती है ,
आंधियां चलती है
तूफान उमड़ते हैं
बड़े -बड़े तरु धराशायी हो जाते हैं
ऊँचे -ऊँचे भवन नष्ट हो जाते हैं ,
नदियों का तेज बहाव
रुक जाता है
समुन्द्र में
ज्वार भाटे आते हैं ,
दिन में तारें
निकल आते हैं
सूर्य का तेज
निस्तेज हो जाता है ,
पशु पक्षी शांत हो जाते हैं
हजूम के हजूम
उमड़ आते हैं
सिंहासन हिल जाते हैं
तख्ते ताउस बदल जाते हैं ,
राजनितिक गतिविधियाँ
तेज हो जाती हैं
बम के गोले फूटते हैं
मिसालियें छोड़ी जाती हैं ,
देश भक्त शहीद
हो जाते हैं
देश के देश
बर्बाद हो जाते हैं
जब ईमानदारी बोलती है

कोई टिप्पणी नहीं: