गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

कलयुगी शिकारी

निरीह जानवर का बच्चा
बड़ी बेदर्दी से
दोनों हाथों से पकड़कर
आकाश में उठाया और
एक हाथ से गर्दन पकड़कर
दूश्रे हाथ में खंजर लेकर
झटाक से सिर
धड से अलग कर दिया
और सीना फुलाकर कहा
हमने शिकार कर लिया
हम कलयुगी शिकारी हैं
झटके का खाते हैं
हलाली से हमारा क्या वास्ता
क्यों की हम हिंदू हैं ,
हलाली का तो मुस्लिम खाते हैं
कैसे बेरहम हैं वो
जो निरीह जानवर के बच्चों की
गर्दन पर छुरी धीरे -धीरे चलाकर
शिकार करने का नाटक रचाते हैं
आख़िर सोचने का क्या लाभ
झटका करो या हलाली
जानवर का बच्चा तो
जान से चला ही गया
दोनों ने ही शिकारी बनकर
बेचारे बच्चे के मॉस का
स्वाद भी एक सा लिया ।

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