शनिवार, 20 दिसंबर 2008

एक राजा की कहानी किसी ने ना जानीं (पार्ट --२)

अचानक युवराज को एक दिन बीच वाले भाई का एक दोस्त मिला दुआ सलाम के बाद उसने कहा भाई साहब आप भी दस बीस लाख रुपया मेरे बैंक में फिक्स करा लो ,आपके छोटे भाई ने तो दो महीने पहले ही दस लाख रुपया मेरे बैंक में फिक्स कराया है वैसे उन्होंने ही मुझे कहा था की भाई साहब से पूछ लेना ,युवराज ने कहा ठीक है मैं आपको बता दूंगा ,युवराज ने घर पहुंचकर बीच वाले भाई को बुलाया और उससे कहा की आज उसका अमुक मित्र मिला था कह रहा था की तुमने उसके बैंक में दस लाख रुपया भी फिक्स कराया है और कुछ रुपया भी अभी फिक्स कराने को कहा है तो कब फिक्स करवा रहे है आप् और रुपया ,ज़रा हमे भी तो बताओ की इतना रुपया कहाँ से आ रहा हैं ,जब की मैं पाई-पाई के लिए दुखी हूँ और तुम पैसे फिक्स कराते घूम रहे हो ,तुम्हें तो कम से कम शर्म आणि चाहिए तुम्हारे लिए मैंने क्या नही किया ,तुम बजाय मेरे पैसे देने के मुझे और चुना लगाकर मेरा और मेरे बच्चौं का भविष्य ख़राब करने में लगे हो ,तुम तो भाई के नाम पर कलंक हो तुम्हें समाज की भी परवाह नहीं की लोग क्या कहेंगे यदि हम कहीं भी डिफाल्टर हो गए तो हमारी बनी बनयी इज्जत खाक में मिल जायेगी ।
वो कहता है की मुझे ये सब कहानियाँ सुनाने की जरुरत नहीं है की इज्जत ख़राब होगी या अच्छी होगी यदि ख़राब होगी तो तुम्हारी ही होगी मेरी तो ख़राब होने से रही क्यों की मैं तो पैसे का लें देन करता नहीं ,तुम करते रहे हो तो तुम ही जानो मुझे तो कभी तुमने क्यार मुख्त्यार बनाया ही नही इस लिए कोई मुझसे पैसे मांगकर तो देखे फ़िर उसको देख लूंगा ,रही मेरे लिए कुछ करने ना करने की जब बड़े भाई बने हो तो ये सब करना ही था ,ये भी कोई मुझ पर अहसान तो नहीं कर दिया मैं भी तो तुम्हारे साथ लगा ही रहता था फ़िर मैंने कोण सा कहा था की मेरे लिए कुछ करो , तुम करते रहे में भरता रहा भला आता किसको बुरा लगता है ,वैसे जो कुछ मेरा दोस्त कुछ कह रहा था वो सब झूट बोल रहा होगा क्यों की मेरी उसकी आजकल बन नही रहीं इसलिए लड़ाने की कोशिश कर रहा होगा ,वैसे भी मैंने अब आपके साथ नहीं रहना ,मुझे मेरा हिस्सा दो ताकि मैं भी अपने बच्चों का भविष्य संभालूं और मैं तुम्हारे साथ लगा रहा तो बर्बाद ही हो जाउंगा क्यों की सत्यावादी हरिश्चंद्र तो तुमने बन्ना है मेने नहीं , उसे इतना बोलता देख कर युवराज जान गया की पानी सर के उपर से उतरने लगा है अब तो भगवन ही बचा पाएंगे इस लिए अभी वो अलग थलग के मामले को टालना चाहता था इसी तरह लड़ते झगड़ते दो तीन वर्ष और बीत गए आख़िर एक दिन वाही हुआ जिसकी युवराज को आशंका थी
एक दिन सुबह -सुबह वो गुस्से में युवराज के पास पहुंचकर बोला की मुझे मेरा हिस्सा देकर अलग कर रहे हो या नहीं ,युवराज बोला तुम्हारा कैसा हिस्सा क्या कभी तुमने मुझे कमाकर दिया है जो आज हिस्से की मांग कर रहे हो और जो कुछ तुम्हारे नाम करा रखा है वो सब मेरे ही प्रयत्नों का फल है वो बोला है तो मेरे ही नाम ,जो मेरे नाम वो मेरा ,वैसे भी तुम मेरे बड़े भाई हो जो मांगूंगा वो तो देना ही पड़ेगा अब चाहे राजी से दो ,या गैर राजी ,युवराज ने कहा की पन्द्रह दिन बाद फैसला कर लेंगे हम तुम दोनों ही बैठकर ,बेकार में दुनिया को सुनाने का क्या फायदा ,नहीं भाई साहब मैं तो अपने चार दोस्तों को जरुर बुलाउंगा ,ठीक है बुला लेना
ठीक पन्द्रह दिन बाद वो अपने चार दोस्तों को लेकर ऑफिस में आ गया वेसे उसके चारो दोस्त युवराज को भली भांति जानते थे और ये भी जानते थे की किसने क्या किया ,उसको पता था की युवराज इन सबके सामने ऐसी बात नही करेगा जो उसके हित मैं हो जिसकी वजह से खानदान की इज्जत खतरे में हो ,युवराज उन चारों के सामने पूछा की पहले तुम ये बताओ की तुमने कौन सी चीज बनाकर अपने प्रयत्नों से खड़ी की या केवल कोर्चा करना ही सीखा तुम केवल मेरे पास एक नौकर की हेसियत से काम करते रहे हो ,केवल मेरी गलती ये है की मेने तुम्हें कभी भी नौकर ना समझकर अपना भाई ही समझा और उसका नाजायज फायदा तुम उठा रहे हो ,किसी भी चीज पर तुम्हारा कोई हक नहीं है फ़िर हिस्सा किस तरह मांगते हो ,यदि तुम मेरी इस बात से राजी हो तो एक कागज पर लिख कर दे दो ,वो बोला लाओ मैं लिख कर दे देता हूँ और उसने एक कागज़ लेकर लिखना शुरू कर दिया वो रोता जा रहा था और लिखता जा रहा था ,और उसने लिखकर दे दिया की फेक्ट्री ,दूकान ,मकान प्लाट या जो भी जायदाद है उस पर मेरा कोई हिस्सा नहीं है और ना ही मेरा हक है
युवराज भावनाओं में बह गए और उस लिखे कागज़ को फाड़कर फेंक दिया ,फ़िर उसको कहा की बोल तुझे क्या चाहिए ,वो बोला जो आपने देना है ख़ुद ही दे दो ,युवराज ने कहा तुम ख़ुद ही मांग लो ,वो बोला जो मेरे नाम है फेक्ट्री ,प्लाट दूकान और बियर का लाइसेंस और कुछ रुपया ,यानी की उसने युवराज की शराफत का पूरा फायदा उठाया युवराज ने कहा की और रुपयों के अलावा सब तुझे दिया ,क्यों की तुमने रुपयों के मामले में तो मुझे पहले ही कंगला कर रखा है ,पर उसका एक दोस्त बोला भाई साहब जहाँ आपने इतना दे दिया वहीं दो चार लाख में क्या फर्क पडेगा और युवराज ने तीन लाख रूपये भी दे दिए युवराज बोला अब मेरे पास मकान या एक प्लाट के अलावा कुछ नहीं बचा है यदि बचा है तो कुछ कर्जा ही बचा होगा ,अब रही मकान की बात तो ये बताओ की वो कब खाली करना है वो बोला की जितनी जल्दी होगा जेसे ही मेरा इंतजाम हो जायेगा कर दूंगा ज्यादा से ज्यादा एक वर्ष ,चलो ठीक है अब आप लोग कहेंगे की युवराज ने ऐसा क्यों किया ,क्यूँ की वो दुनिया को अपने घर का झगडा दिखाना नहीं चाहता था दुसरे वो किसी भी कीमत पर शान्ति खरीदना चाहता था ,उसे अपने बाजुओं पर भी भरोसा था ,सबसे बड़ी गलती युवराज ने जो की वो थी की उसे मकान से तभी निकाल देना चाहिए था जो उसने भावनाओं में बहकर नहीं किया ,युवराज की दूसरी गलती थी इस फेसले को किसी स्टांप पेपर पर लिखवाना चाहिए था और उन पंचों के भी दस्तखत भी कवाने चाहिए थे ताकि वो सब आगे काम में आते ,तीसरी गलती की एक झूठे और मक्कार व्यक्ति (भाई )पर विश्वास किया अब आगे देखिये उस भाई ने अपने देवता जैसे भाई के साथ कैसा -कैसा खेल खेला युवराज और उसके बच्चों की जिन्दगी कैसे बरबाद की और भगवान् ने उसके साथ क्या किया

कोई टिप्पणी नहीं: