शनिवार, 6 दिसंबर 2008

मेरे अपनों ने

जितने भी पुष्प मैने
उनके पगों तले बिछाये
एक पुष्प के बदले
हजारो हजारो शूल उन्होंने
मेरे तलवो में चुभाये
यद्दपि मैने मोह वश
चीत्कार तो न किया
पैर रुद्र मेरे नैनो से बह
कपोलो पर लुड़क कर
मेरे कंठ को शुद्ध कर
मेरे हृदये में जा समाये ।
जितने भी प्राकृतिक एवम
कृत्रिम बसंतो से
उन्हें आतम विभोर कराये
उनसे सहस्रों गुन्हे पतझड़
अंधड़ व तूफ़ान
वे मेरे जीवन में चुन चुन कर लाये
यधपि में टूट ना पाया
बल्कि संघर्ष किया
इस लिए भूकंप भी मेरा
बाल बांका तक न कर पाये ।
जितने भी स्वर्णिम दिन व
चांदनी राते मेरे पास थी
उनमे भी मैने उनको
लोरियां गा गा कर सुलाए
मीठी मीठी नींद में
आनंदमय होते हुए भी
नस्तर मेरे हृदये में चुभाये
फ़िर भी में घायल न हुआ
न ही रक्त नाले बह पाये
पर मेरे प्रेम को ठेस दे
अवनती के परचम फेलाए ।

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