शनिवार, 20 दिसंबर 2008

ज़िन्दगी को रोको मत

ज़िन्दगी जैसे भी
चलती हे चलने दो
उसे रोको मत
तारों की मद्धिम रोशनी जैसी
या शशी की शीतलता जैसी
अथवा रवि की भांति
अपनी किरणों से
जीवन दान देती
या अग्नि की भांति
बदले की आग में
झुलसती है तो
झुलसने दो
उसे रोको मत ,
नदिओं के बहाव की भांति
झरनों की फुहार की भांति
बर्फ की तरह ठंडी होकर
या हवा की तरह
झोंके देकर
या ज्वालामुखी की भांति
संसार का सर्वनाश कर
जैसे भी चलती है
चलने दो
उसे रोको मत ,
यदि चिंतित है तो
चिंताग्रस्त होने दो
मुस्कराना चाहे तो
मुस्कुराने दो
यदि हंस नहीं सकती
तो ना हँसे
रोना चाहती है तो
जी भरकर रोने दो
पर उसे रोको मत ,
स्वार्थी बनकर चलती है
तो चलने दो
अपकारी बन कर
जीना चाहे तो जिए
रिश्वतखोरों की तरह
भ्रष्टाचारियों की तरह
तिजोरियां भरकर
अपमानित होना चाहती है
तो होने दो
पर उसे रोको मत ,
अपनी संस्कृति त्याग कर
नारी को अपमानित कर
देश को गिरवी रखकर
जैसे भी जीना चाहती है
जीने दो
उसे रोको मत ,
ऐसा करते -करते
वो एक दिन थक जायेगी
स्वयम से उदास हो जायेगी
जब गलती का भान होगा
तो बहुत पछताएगी
पागल होगी
आत्महत्या करेगी
स्वयम को कोसते -कोसते
एक दिन मर जायेगी
उसे रोको मत ,
उसका अंत वीभत्स होगा
असंख्य पीडाओं से
ग्रस्त होगा
संपूर्ण देश व समाज
उसके कार्यों से
त्रस्त होगा
उसकी आत्मा ही उसे
दीमक की भांति
चाट कर जायेगी
पर उसे रोको मत ,

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