शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008

तन भी अपनों का

मेरे अपनों ने
मेरे बंधू बांधव व
जिगर के टुकडों ने
मेरा ही रक्त पीकर
मेरा मांस व
जिगर को नोच-नोच कर
खाने के बाद भी कहा
अभी तक तुमने हमको
दिया ही क्या है ,
जो अश्थी पंजर
तुम्हारे पास हैं
जिनमें बहुत कुछ
तुमने छिपा रखा है
वो भी तो हमारा है ,
उस पर हमारा
हमारे कुल का
नाम लिखा है ,
यदि तुम दधिची हो
निस्वार्थी हो
परोपकारी हो तो
इस अस्थी पंजर तन को भी
हमारे हवाले कर
अपना नाम किसी रामायण या
महाभारत में लिखाकर
देदीप्यमान कर
देवगति प्राप्त कर लो

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