रविवार, 21 दिसंबर 2008

भूखे व्यक्ति की मनोदशा

जब भूख लगी होती है
आत्मा सो जाती है
भावनाए मर जाती हैं
स्मृति नष्ट हो जाती है
ह्रदय व्याकुल होता है
अन्दर ही अन्दर रोता है
जड़ता की और अग्रसर होता है
प्रज्ञाशून्य में खो जाती है
धर्म नष्ट हो जाता है
जातीय भेद मिट जाता है
संस्कार लुप्त हो जाते हैं
आदर्शवादिता मुख छुपाती है
छोटे बड़े का भेद मिट जाता है
आदमी भी श्वान बन जाता है
कुत्ता छिनकर भागता है तो
बिन झोली भिक्षुक कहलाता है
पर जब आदमी छिनता है तो
आदमियों से ही मार खाता
उदराग्नि शांत करने के कारण
बहशी ,दरिंदा ,अमानुष कहलाता है
आलोचनाएँ की जाती हैं
आदर समाप्त हो जाता है
और कारण जानने पर भी
हर कोई दुतकारता है
गुलिबंद बाँध दिया जाता है
नामकरण कर दिया जाता है
क्षुधा शांत करने के बजाय
जेल भेज दिया जाता है





3 टिप्‍पणियां:

Varun Kumar Jaiswal ने कहा…

भूख सारे पापों की जड़ है |

K.P.Chauhan ने कहा…

aapne bhukhe vyakti ki manodashaa naamak kavita par jo nishkars nikalkar comment diyaa uske liye main aapkaa aabhaari hun .krpyaa isi tarh hamaaraa manobal badate rahen .dhanyavad .

K.P.Chauhan ने कहा…

aapne bhukhe vyakti ki manodashaa naamak kavita par jo nishkars nikalkar comment diyaa uske liye main aapkaa aabhaari hun .krpyaa isi tarh hamaaraa manobal badate rahen .dhanyavad .